Swati Sharma

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लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से)

यादों के झरोखे से:-


    मेरी बुआ मुझे बताती हैं कि जब मेरा जन्म हुआ था। तब चूंकि मेरे पिताजी घर में बड़े पुत्र हैं, तो मेरी सबसे छोटी बुआ के बाद काफ़ी समय के अंतराल में मैं घर में आई। मेरे जन्म होने के कुछ ही दिन बाद मेरे चाचाजी की सरकारी बैंक में नौकरी लग गई। इसी कारण घर में सब मुझे भाग्यशाली मानते थे। मेरे चाचा को जब पहली तनख्वाह मिली तो उन्होंने यह कहकर वो पूरी तनख्वाह मेरे नन्हें नन्हें हाथों में रख दी कि यह सब इसी के कारण हुआ है। यह घटना मुझे याद नहीं क्योंकि तब मेरा जन्म हुआ ही था तो मुझे भला क्या पता होगा। परंतु, मेरी बुआ मुझे यह बातें अक्सर बताते हुए मेरे जन्म के समय को याद करती हैं।
      जब थोड़ी बड़ी हुई तो मेरी अम्मा (दादी) मुझे अपने साथ भजन में ले जाया करती थीं। मैं नन्हें नन्हें कदमों से उनके साथ चलती थी। वहां भजनों में ले जाकर वे मेरे हाथों में मंजीरे पकड़ा देती, यह सोच कर की में उनसे खेलती रहूंगी। मैं भी बड़े मजे से। मंजीरे बजाती रहती। अम्मा गांव में रहती थीं। वहां औरतें ज़र्दा खाती और सूंघती भी हैं। मेरी बुआ मुझे समझा कर अम्मा के साथ भेजती थीं कि यदि अम्मा जर्दे का सेवन करें तो चुपचाप मुझे आकार बता देना। मैं ठीक वैसा ही करती। हमारे घर आते ही बुआ मुझे पूछतीं कि अम्मा ने जर्दे का सेवन किया या नहीं। कहते हैं ना बच्चों में भगवान बसते हैं। मैं उन्हें कह देती हां, बुआ आज किया था। बस फिर क्या ? फिर अम्मा की रिमांड लगती बुआ से। यह वाक्य मुझे याद है क्योंकि तब में छोटी तो थी। परंतु,बोलना और समझना जानती थी।
       घर में सबसे छोटी होने के कारण सबकी बहुत लाड़ली थी मैं। ऊपर से थोड़ी गोलू मोलू होने के कारण सबको बड़ी प्यारी लगती थी। अम्मा का घर हो या नानी का सभी बड़े लोग और भाई- बहन हमेशा गोदी में लेकर घूमते खेलते रहते थे। इसी कारण चलना भी बहुत देर से सीखी थी। फिर बाद में मेरे पिताजी ने मुझे काठ की लकड़ी की एक चलना सीखने वाली गाड़ी लाकर दी थी, जिसके सहारे मैं चलना सीखी।
       एक बार तो मेरे मामाजी के लड़के मुझे गोद में लेकर भाग रहे थे और अचानक पेड़ों से टकराने के कारण मेरे सर में।चोट लगी थी। उस समय भैया को बहुत दुःख हुआ था कि उनके कारण मेरे चोट लग गई। सबसे उन्हें दांत भी पड़ी। ये सभी यादें मेरे हृदय के बहुत करीब हैं। जब भी याद आती हैं चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है। अच्छा लगता है कि वाह! सबकी कितनी लाड़ली थी मैं। कितना प्यार मिला सबसे मुझे। इसीलिए स्वयं को बहुत भाग्यशाली और ईश्वर की आभारी मानती हूं।

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6 Comments

Mohammed urooj khan

25-Nov-2022 12:02 PM

सही कहा आपने, बचपन की हर बात निराली थी 👌👌👌

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Swati Sharma

25-Nov-2022 12:09 PM

जी सर, आपका हार्दिक आभार 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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Gunjan Kamal

25-Nov-2022 11:12 AM

बचपन की हर बात निराली थी, अब वो बात कहां

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Swati Sharma

25-Nov-2022 12:10 PM

जी मेम आपका हार्दिक आभार

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Reena yadav

25-Nov-2022 12:45 AM

सच में बचपन की हर एक बात खास होती थी...😇🌺

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Swati Sharma

25-Nov-2022 12:10 PM

जी मेम आपका हार्दिक आभार 🙏🏻😇

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